Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व (US Hegemony in World Politics) Notes In Hindi NCERT Solutions

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Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व (US Hegemony in World Politics) Notes In Hindi NCERT Solutions

Textbook NCERT
Class 12th
Subject Political Science (समकालीन विश्व राजनीति)
Chapter 3rd
Chapter Name समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व (US Hegemony in World Politics)
Category Class 12th Political Science
Medium Hindi
Source LastDoubt.in

NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व (US Hegemony in World Politics) Notes In Hindi जिसमे हम, मकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व, समकालीन विश्व, र्चस्व की परिभाषा, अमेरिकी वर्चस्व में मुख्य अवरोध, र्चस्व के विभिन्न प्रकार, यूएसए की खोज, मकालीन की परिभाषा, वर्तमान विश्व व्यवस्था, समकालीन का पर्यायवाची , वेल्ट राजनीति, समकालीन विश्व में साहित्य का महत्व आदि के बारे में पढ़ेंगे।

Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व (US Hegemony in World Politics) Notes In Hindi NCERT Solutions

Chapter – 3

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

Notes

अमेरिका द्वारा ‘नई विश्व व्यवस्था’ की शुरुआत – 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीत युद्ध का अंत हो गया तथा अमेरिकी वर्चस्व की स्थापना के साथ विश्व राजनीति का स्वरूप एक-ध्रुवीय हो गया। अगस्त 1990 में इराक ने अपने पड़ोसी देश कुवैत पर कब्जा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस विवाद के समाधान के लिए अमरीका को इराक के विरूद्ध सैन्य बल प्रयोग की अनुमति दे दी। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह नाटकीय फैसला था। अमेरिका राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इसे नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा दी।
वर्चस्व – वर्चस्व (हेजेमनी) शब्द का अर्थ है सभी क्षेत्रों जैसे सैन्य, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मात्र शक्ति केन्द्र होना।
अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत – अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत 1991 में हुई जब एक ताकत के रूप में सोवियत संघ अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गया। इस स्थिति में अमरीकी वर्चस्व सार्वव्यापी मान्य हो गया। अन्यथा अमेरिकी वर्चस्व 1945 से ही अंतर्राष्ट्रीय पटल पर विद्यमान था।
प्रथम खाड़ी युद्ध (First Gulf War) – अमेरिकी के नेतृत्व में 34 देशों ने मिलकर और 6,60,000 सैनिकों की भारी-भरकम फौज ने इराक के विरुद्ध युद्ध किया और उसे परास्त कर दिया। इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है।
प्रथम खाड़ी युद्ध  (ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म)

1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से उस पर कब्ज़ा जमा लिया। सभी देशों द्वारा इराक को समझाने की कोशिश की गई की यह गलत है लेकिन इराक नहीं माना तब संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N) ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे दी। संयुक्त राष्ट्रसंघ के इस सैन्य अभियान को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ कहा जाता है।

संघ (U.N) का यह फैसला नाटकीय फैसला कहलाया क्योंकि (U.N) ने शीत युद्ध से अब तक इतना बड़ा फैसला नहीं लिया जॉर्ज बुश ने इस नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा दी

एक अमरीकी जनरल नार्मन श्वार्जकॉव इस सैन्य-अभियान के प्रमुख थे और 34 देशों की इस मिली जुली सेना में 75 प्रतिशत सैनिक अमरीका के ही थे। हालाँकि इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कहा था कि यह ‘सौ जंगों की एक जंग’ साबित होगी लेकिन इराकी सेना जल्दी ही हार गई और उसे कुवैत से हटने पर मजबूर होना पड़ा।

कंप्यूटर युद्ध (Computer War)

प्रथम खाड़ी युद्ध के दौरान अमरीका की सैन्य क्षमता अन्य देशो की तुलना में कही अधिक थी। अमरीका ने प्रथम खाड़ी युद्ध में स्मार्ट बमों का प्रयोग किया। इसके चलते कुछ पर्यवेक्षकों ने इसे ‘कंप्यूटर युद्ध’ की संज्ञा दी।

इस युद्ध की टेलीविज़न पर बहुत ज्यादा कवरेज हुई इस कारण से इसे वीडियो गेम वॉर भी कहा जाता है।

जार्ज वुश के बाद कौन राष्ट्रपति बने – प्रथम खाड़ी युद्ध के बाद 1992 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए बिल क्लिंटन नए राष्ट्रपति बने। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन लगातार दो कार्यकालों (जनवरी 1993 से जनवरी 2001) तक राष्ट्रपति पद पर रहे। इन्होंने अमेरिका को घरेलू रूप से अधिक मजबूत किया और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा जलवायु परिवर्तन तथा विश्व व्यापार जैसे नरम मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया।
अमेरिकी दूतावास पर हमला

केन्या (नरोनी) में बने अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ। एव डरे सलाम (तंजानिया) में बने अमेरिकी दूतावास पर भी हमला हुआ।

हमले की जिम्मेदारी “अल कायदा” को बताया गया आतंकवादी संगठन को इसका जिम्मेदार बताया गया

ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (Operation Infinite Reach)

युद्ध के जवाब में 1998 में बिल क्लिंटन ने “ऑपरेशन इनफाइनाइट रिच” चलाया।

ऑपरेशन में उन्होंने सूडान और अफगानिस्तान के आतंकवादी ठिकाने पर “क्रूज मिसाइल” से हमला किया।

11 सितम्बर (9/11) की घटना 

11 सितम्बर 2001 को अलकायदा के 19 आतंकियों ने अमेरिका के चार व्यवसायिक विमानों को कब्जे में ले लिय। अपहरणकर्ता इन विमानों को अमेरिका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गये।

दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए।

तीसरा विमान पेंटागन (रक्षा विभाग का मुख्यालय) की बिल्डिंग से टकराया।

चौथे विमान को अमरीकी कांग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन वह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘9/11’ कहा जाता है।

9/11 की घटना के परिणाम

इस घटना से पूरा विश्व हिल सा गया। अमरीकियों के लिए यह दिल दहला देने वाली घटना थी।

इस हमले में लगभग 3 हजार व्यक्ति मारे गये।

ऑपरेशन एनड्यूरिंग फ्रीडम (Operation Enduring Freedom)

आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश (George W. Bush) ने 2001 में ‘ऑपरेशन एन्डयूरिंग फ्रीडम’ चलाया।

यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 की घटना का शक था। इस अभियान में मुख्य निशाना अलकायदा और अपफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया गया।

ऑपरेशन एन्डयूरिंग फ्रीडम का यह परिणाम निकला कि तालिबान की समाप्ति हो गई और अलकायदा का कमजोर पड़ गया।

9/11 के बाद अमरीका द्वारा बनाए गए बंदी

अमेरिका सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ कीं। अक्सर गिरफ्तार में लोगों के बारे में उनकी सरकार को जानकारी नहीं दी गई।

गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुफिया जेलखानों में रखा गया। क्यूबा के निकट अमेरिका नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो बे में है। कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया।

इस जगह रखे गए बंदियों को न तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमेरिका के कानूनों की। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (Operation Iraqi Freedom)

19 मार्च 2003 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमति के बिना ही इराक पर हमला कर दिया। जिसे ऑपरेशन इराकी फ्रीडम कहा। दिखावे के लिए अमेरिका ने कहा कि इराक खतरनाक हथियार बना रहा है। लेकिन बाद में पता चला कि इराक में कोई खतरनाक हथियार नहीं है।

हमले के पीछे उपदेश-अमेरिका इराक के तेल भंडार पर कब्जा और इराक में अपनी मनपसंद सरकार बनाना चाहता था।

इस के बाद सद्दाम हुसैन का अंत हो गया साथ ही बहुत से आम नागरिक भी मरे गए। पूरा विश्व ने इस बात की आलोचना की थी। इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश थे। ऑप्रेशन इराकी फ्रीडम को सैन्य और राजनीतिक धरातल पर असफल माना गया क्योंकि इसमें 3000 अमेरिकी सैनिक, बड़ी संख्या में इराकी सैनिक तथा 50000 निर्दोष नागरिक मरे गए थे।

अमरीका इतना ताकतवर क्यों है ? इसके महाशक्ति होने के कारण

  • बढ़ी – चढ़ी सैन्य शक्ति के कारण महाशक्ति।
  • सैन्य प्रौद्योगिकी।
  • दुनिया के 12 ताकतवर देशों में से अकेला अमेरिका ही रक्षा बजट पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च करता है।
  • पेंटागन अपनी रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा सैन्य तकनीक तथा अनुसधान पर खर्च करता है।
  • हथियार आधुनिक है तथा गुणात्मक रूप से दुनिया मे सबसे ज्यादा अच्छे है।
  • दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति।
  • VETO POWER भी है।
विश्व की अर्थव्यवस्था में अमेरिका का स्थान

  • विश्व की अर्थव्यवस्था में अमेरिकी भागीदारी 28 प्रतिशत है।
  • हर क्षेत्र में अमेरिका की कोई न कोई कम्पनी अग्रणी तीन कम्पनियों में से है।
  • प्रमुख आर्थिक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे IME, विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन पर अमेरिका का दबदबा।
  • विश्व व्यापी वेब (वर्ल्ड वाइड वेव), (WWW) या इंटरनेट पर अमेरिकी प्रभुत्व एवं MBA की डिग्री।
अमरीकी वर्चस्व की राह में तीन सबसे बड़े अवरोध – अमेरिकी वर्चस्व को लगाम लगाने में ये तीन चीजें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
अमेरिका की संस्थागत बनावट – अमेरिका की संस्थागत बनावट, जिसमें सरकार के तीनों अंगों यथा व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे के ऊपर नियंत्रण रखते हुए स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करते है।
अमेरिकी समाज की उन्मुक्त प्रकृति – अमेरिकी समाज की प्रकृति उन्मुक्त है। यह अमेरिका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में बड़ी भूमिका निभाती है।
नाटो (Nato) – नाटो, इन देशों में बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है। नाटो में शामिल देश अमेरिका के वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते है। इस संगठन का नाम है ‘नाटो’ अर्थात् उत्तर अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन।
अमेरिकी वर्चस्व से बचने के उपाय

बैंडवैगन नीति – इसका अर्थ है वर्चस्वजनित अवसरों का लाभ उठाते हुए विकास करना।

  • भारत, चीन, रूस साथ हो जाए तो अमेरिकी वर्चस्व से बचा जा सकता है ।
  • कोई देश आपने आप को अमेरिकी नजर से छुपा ले।
  • यदि राज्येतर संस्थाएँ, NGO, सामाजिक आंदोलन, मीडिया, जनता, बुद्धिजीवी, कलाकार, लेखक, सभी मिलकर अमरीकी वर्चस्व का प्रतिरोध करे।
भारत अमेरिकी संबंध

शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनाने के कारण महत्वपूर्ण हो गए है। भारत अब अमेरिका की विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसके प्रमुख लक्षण परिलक्षित हो रहे है।

अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार।

अमेरिका के विभिन्न राष्ट्रध्यक्षों द्वारा का भारत से संबंध प्रगाढ़ करने हेतु भारत की यात्रा।

अमेरिका में बसे अनिवासी भारतीयों खासकर सिलिकॉन वैली में प्रभाव।

सामरिक महत्व के भारत अमेरिकी असैन्य परमाणु समझौते का सम्पन्न होना।

बराक ओबामा की 2015 की भारत यात्रा के दौरान रक्षा सौदों से संबंधित समझौतों का नवीनीकरण किया गया तथा कई क्षेत्रों में भारत को ऋण प्रदान करने की घोषणा की गयी।

वर्तमान अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आउटोंसिंग संबंधी नीति से भारत व्यापारिक हित प्रभावित होने की संभावना है।

वर्तमान में विभिन्न वैश्विक मंचों पर अमेरिका राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच हुई मुलाकातों तथा वार्ताओं को दोनों देशों के मध्य अर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा सैन्य संबधों के सृदृढ़ीकरण की दिशा में सकारात्मक संदर्भ के रूप में देखा जा सकता है।

 


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